मनीष सिसोदिया समाचार: दिल्ली हाईकोर्ट ने रद्द हो चुकी शराब नीति से जुड़े प्रवर्तन निदेशालय (ED) के मनी लॉन्ड्रिंग केस और केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) के भ्रष्टाचार मामले, दोनों में ही दिल्ली के पूर्व उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया की जमानत याचिकाएं खारिज कर दीं। हाईकोर्ट ने सख्त टिप्पणी करते हुए कहा कि ‘सिसोदिया का आचरण लोकतांत्रिक सिद्धांतों के साथ बड़ा विश्वासघात है। यह मामला सत्ता के गंभीर दुरुपयोग को दर्शाता है।’
HIGHLIGHTS
- ‘प्रभावशाली’ सिसोदिया को HC से जमानत नहीं
- हाईकोर्ट ने कहा, सबूतों से छेड़छाड़ का खतरा
- यह मामला सत्ता के गंभीर दुरुपयोग को दिखाता है- HC
- रद्द हो चुकी शराब नीति से जुड़े ED-CBI केस में जमानत अर्जी खारिज
नई दिल्ली: दिल्ली की 2021-22 की शराब नीति में कथित घोटाले से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग मामले में पूर्व उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया को जमानत देने से दिल्ली हाई कोर्ट ने इनकार कर दिया। अदालत ने आम आदमी पार्टी के वरिष्ठ नेता के खिलाफ अभियोजन पक्ष को अपने मामले को प्रभावी ढंग से पेश करने में सफल और सिसोदिया को असफल माना। अदालत ने कहा कि पहली नजर में सिसोदिया मनी लॉन्ड्रिंग की रोकथाम से संबंधित कानून के तहत अपराध के आरोपी प्रतीत होते हैं। अदालत को कथित घोटाले में सिसोदिया का आचरण लोकतांत्रिक सिद्धांतों के विपरीत लगा। हाई कोर्ट ने दिल्ली सरकार और आम आदमी पार्टी में सिसोदिया के प्रभाव को ध्यान में रखते हुए सबूतों के नष्ट होने की आशंका भी जताई। अदालत ने सिसोदिया की जमानत याचिका खारिज करते हुए उन्हें अपनी बीमार पत्नी से रोजाना मुलाकात की छूट को बनाए रखा।
‘प्रभावशाली’ सिसोदिया को हाईकोर्ट से जमानत नहीं
हाईकोर्ट ने इस तथ्य को भी महत्व दिया कि सिसोदिया दिल्ली सरकार में एक महत्वपूर्ण पद पर थे और 18 विभागों का प्रभार संभाल रहे थे। इसके साथ ही, आम आदमी पार्टी के वरिष्ठ नेता होने के नाते वह दिल्ली सरकार और पार्टी, दोनों में प्रभावशाली थे। हाईकोर्ट ने कहा कि वह दिल्ली सरकार के सत्ता गलियारों में एक बेहद शक्तिशाली और प्रभावशाली व्यक्ति थे। हाईकोर्ट ने माना कि अभियोजन पक्ष सिसोदिया के खिलाफ प्रथम दृष्टया अपना केस साबित करने में सफल रहा, जबकि याचिकाकर्ता जमानत के लिए उचित आधार प्रस्तुत करने में असफल रहा।
‘सिसोदिया का व्यवहार लोकतांत्रिक सिद्धांतों के साथ बड़ा विश्वासघात’
जस्टिस स्वर्ण कांता शर्मा ने मंगलवार को देर शाम साढ़े छह बजे के बाद अपना फैसला सुनाया। कोर्ट ने कहा कि अभियोजन पक्ष ने प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट (PMLA) की धारा 3 के तहत प्रथम दृष्टया मनी लॉन्ड्रिंग का मामला साबित किया है। कोर्ट ने कहा कि सिसोदिया का आचरण ‘लोकतांत्रिक सिद्धांतों के साथ बड़ा विश्वासघात’ है। कोर्ट ने यह भी पाया कि आरोपी नेता कई अहम साक्ष्यों, जिनमें इलेक्ट्रॉनिक सबूत भी शामिल हैं, को नष्ट करने में शामिल थे। सिंगल जज की बेंच ने इस संदर्भ में दो मोबाइल फोन का हवाला दिया जिन्हें नष्ट किए जाने का दावा किया गया था।
कुछ लोगों को फायदा पहुंचाने के लिए बनी थी नीति: HC
हाईकोर्ट के निर्णय के अनुसार, सिसोदिया ने आबकारी नीति को लेकर जनता को गुमराह करने के लिए भ्रामक तरीके अपनाए कि नीति का समर्थन मिल रहा है, जबकि वास्तव में नीति केवल कुछ व्यक्तियों को लाभ पहुंचाने के लिए बनाई गई थी। जस्टिस शर्मा ने इसे भ्रष्टाचार का एक प्रकार बताया। कोर्ट ने कहा कि मामले में सिसोदिया ने सत्ता का बड़ा दुरुपयोग किया और जनता के विश्वास को भी तोड़ा है। निर्णय में कहा गया है कि जांच के दौरान जमा की गई साक्ष्य से स्पष्ट होता है कि प्रथम दृष्टया सिसोदिया ने पहले से तय लक्ष्य के मुताबिक पब्लिक फीडबैक को धोखा देकर आबकारी नीति को बनाने की प्रक्रिया को अपनी मनमानी में बदल दिया।
ट्रायल कोर्ट या अभियोजन पक्ष ने कोई देरी नहीं की- कोर्ट
हाईकोर्ट ने ट्रायल में देरी से जुड़ी आप नेता की दलील को ठुकरा दिया। कोर्ट ने कहा कि किसी भी देरी के लिए न तो सीबीआई और ईडी को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है और न ट्रायल कोर्ट को। जस्टिस शर्मा ने माना कि इसमें भी सिसोदिया और अन्य सह आरोपियों की भूमिका है। हाई कोर्ट ने सिसोदिया को जमानत देने से इनकार करने वाले ट्रायल कोर्ट के आदेशों को बरकरार रखा। सुप्रीम कोर्ट ने भी अक्टूबर 2023 में इस निर्णय को समर्थन दिया था। तब भी सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि अगर सुनवाई धीमी गति से आगे बढ़ी तो सिसोदिया फिर से जमानत के लिए याचिका दायर कर सकते हैं। इसके बाद उन्होंने दूसरी बार यह कोशिश की। सिसोदिया 26 फरवरी, 2023 से हिरासत में हैं।