डोनाल्ड ट्रम्प के आने से भारत पर क्या होगा असर ?

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U.S. President Donald Trump and India's Prime Minister Narendra Modi participate in the "Howdy Modi" event in Houston, Texas, U.S., September 22, 2019. REUTERS/Jonathan Ernst

ट्रंप के दोबारा चुने जाने पर दुनियाभर में चर्चा हो रही है कि उनकी विदेश नीति कैसी होगी। भारत के लिए भी यह महत्वपूर्ण है कि ट्रंप दक्षिण एशिया को किस तरह से संभालते हैं।

दक्षिण एशिया पर ट्रंप की विदेश नीति का क्या प्रभाव पड़ेगा और भारत इसका किस प्रकार से सामना करेगा।

दक्षिण एशिया में भारत, पाकिस्तान, अफ़ग़ानिस्तान, भूटान, नेपाल, श्रीलंका, बांग्लादेश और मालदीव जैसे देश शामिल हैं। विश्व बैंक के अनुसार इस क्षेत्र की जनसंख्या लगभग 1.94 अरब है। इस इलाके में भारत एक तेज़ी से बढ़ती अर्थव्यवस्था है और दुनिया की पाँचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में उभरा है।

डोनाल्ड ट्रम्प

क्या होगा नया कार्यालय?

राजीव डोगरा, जो इटली, पाकिस्तान और ब्रिटेन में भारत के राजनयिक रह चुके हैं, का कहना है कि ट्रंप का सबसे बड़ा नारा “मेक अमेरिका ग्रेट अगेन” है, और उनकी नीतियाँ इसी सोच से प्रेरित हैं। डोगरा बताते हैं कि इसके तहत, यदि किसी देश पर टैरिफ लगाना या अन्य कड़े कदम उठाना पड़े, तो ट्रंप इसमें कोई संकोच नहीं करेंगे।

डोगरा का कहना है कि ट्रंप को ताकतवर देश और उनके नेताओं की ओर आकर्षण है। ट्रंप को उत्तर कोरिया के शासक किम जोंग उन के साथ भी बातचीत करने में कोई आपत्ति नहीं थी और उन्होंने उत्तर कोरिया के साथ भी संबंध बढ़ाने की कोशिश की थी।

ट्रंप के कार्यकाल में भारत और अमेरिका के रक्षा संबंध कई महत्वपूर्ण चरणों तक पहुंचे थे, जिसमें क्वॉड समूह को पुनर्जीवित करना भी शामिल था। इस समूह में भारत, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और जापान हैं, और इसे कई विशेषज्ञ चीन के खिलाफ एक मोर्चे के रूप में देखते हैं।

वाइस एडमिरल गिरीश लूथरा (सेवानिवृत्त) ने बीबीसी को बताया कि 2020 में जब भारत और चीन के सैनिक पूर्वी लद्दाख में आमने-सामने थे, तब यह खबर आई थी कि चीन से निपटने के लिए अमेरिका और भारत के बीच चर्चा हुई थी, और उस समय ट्रंप राष्ट्रपति थे।

लूथरा कहते हैं कि भारत-अमेरिका संबंधों में अब एक प्रकार की स्थिरता आ गई है, जिससे राष्ट्रपति बदलने से बड़ा असर नहीं पड़ता। वे मानते हैं कि बाइडन के कार्यकाल से बहुत बड़ा अंतर देखने को नहीं मिलेगा, लेकिन ट्रंप के पहले कार्यकाल और संभावित दूसरे कार्यकाल की नीतियों को जोड़कर देखते समय सतर्कता बरतनी चाहिए।

“ट्रंप के चुनाव हारने के बाद दुनिया में काफी बदलाव आ चुके हैं। अब इसराइल ग़ज़ा के अलावा कई मोर्चों पर युद्धरत है, रूस-यूक्रेन का संघर्ष जारी है, ग्लोबल साउथ की आवाज़ मुखर हो गई है, और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का प्रभाव बढ़ रहा है। ऐसे में ट्रंप की नीतियों को उनके पहले कार्यकाल के आधार पर आंकना तर्कसंगत नहीं होगा।”

वे मुद्दे जिन पर भारत की असहजता बढ़ सकती है

लेकिन ट्रंप के आने से भारत के लिए इमिग्रेशन और व्यापार के मामलों में असहजता बढ़ सकती है।

पिछले महीने ही ट्रंप ने टैरिफ के मुद्दे पर चीन, भारत और ब्राज़ील को निशाना बनाया था। ट्रंप भारतीय वस्तुओं पर टैरिफ बढ़ा सकते हैं और वे अक्सर इस बात का उल्लेख करते रहे हैं कि भारत अमेरिकी उत्पादों पर अधिक टैरिफ लगाता है।

वॉशिंगटन डीसी स्थित थिंक टैंक हडसन इंस्टीट्यूट की रिसर्च फेलो अपर्णा पांडे, जो दक्षिण एशिया पर गहरी पकड़ रखती हैं, कहती हैं, “आपको याद होगा कि अपने पहले कार्यकाल में राष्ट्रपति ट्रंप ने भारत के लिए जो जीएसपी (जनरलाइज्ड सिस्टम ऑफ प्रेफरेंस) था, उसे समाप्त कर दिया था, जिससे कुछ भारतीय उत्पाद अमेरिका में बिना शुल्क के प्रवेश कर सकते थे। इसके अलावा, एच1बी वीज़ा पर भी ट्रंप की सख्त नज़र रही है।”

“इसका सबसे अधिक लाभ भारतीयों को मिलता था। साथ ही, कई रिपोर्टें भी हैं जिनमें बताया गया है कि बड़ी संख्या में भारतीय अवैध रूप से अमेरिका में प्रवेश की कोशिश कर रहे हैं। ट्रंप के लिए यह एक रेड लाइन है।” हालांकि, अपर्णा पांडे बताती हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ ट्रंप के अच्छे संबंध हैं और इसका फायदा भारत को मिल सकता है।

पांडे कहती हैं, “भारतीय मूल के अमेरिकी लोगों में रिपब्लिकन पार्टी के प्रति आकर्षण बढ़ रहा है, और यह मौजूदा समय में भारत के लिए सहायक हो सकता है।” ट्रंप के पहले कार्यकाल में पाकिस्तान के साथ संबंधों में भी उतार-चढ़ाव देखने को मिला था।

 

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