
इस बार तीसरी बार सत्ता में आने के लिए भाजपा को सहयोगियों की जरूरत होगी। 272 के जादुई आंकड़े तक पहुंचने के लिए भाजपा को नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू का साथ चाहिए होगा। दोनों को साथ लाने के लिए भाजपा ने तैयारियां शुरू कर दी हैं, लेकिन दोनों का समर्थन पाना भाजपा के लिए आसान नहीं होगा।
18वीं लोकसभा की सियासी तस्वीर अब लगभग स्पष्ट हो चुकी है। हालांकि नतीजे अप्रत्याशित रहे, लेकिन भाजपा ने अपने सहयोगियों के साथ मिलकर सरकार बनाने के लिए बहुमत का आंकड़ा पार कर लिया है। इस बार, मोदी 3.0 सरकार सहयोगियों के समर्थन पर निर्भर रहेगी। सहयोगियों की मदद से सरकार चलाना भाजपा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए चुनौतीपूर्ण साबित होगा। मोदी 2.0 के दौरान जिन मुद्दों को जोर-शोर से उठाकर चुनावी जीत हासिल की गई थी, उन मुद्दों को अब मोदी 3.0 में सहयोगियों के समर्थन से लागू करना कठिन होगा। इनमें ‘वन इलेक्शन-वन नेशन’, यूनिफॉर्म सिविल कोड जैसे मुद्दे शामिल हैं, जिन्हें भाजपा के संकल्प पत्र और मोदी की गारंटी में शामिल किया गया है। इसके अतिरिक्त, भाजपा ने चुनावों के बाद परिसीमन का कार्य शुरू करने का वादा किया था। इन मुद्दों को लागू करने को लेकर आगामी समय में भाजपा और उसके सहयोगियों के बीच मतभेद हो सकते हैं।
सहयोगियों के साथ मिलकर सरकार चलाने में कई तरह की चुनौतियाँ सामने आएंगी। ‘वन इलेक्शन-वन नेशन’ और यूनिफॉर्म सिविल कोड जैसे विवादास्पद मुद्दों पर सहयोगियों का समर्थन पाना कठिन हो सकता है। परिसीमन का कार्य भी एक जटिल प्रक्रिया है, जिसमें विभिन्न राजनीतिक दलों के बीच सहमति बनाना एक बड़ी चुनौती होगी। इन मुद्दों पर सहयोगियों के साथ तालमेल बैठाना और सरकार को स्थिर बनाए रखना भाजपा के लिए आसान नहीं होगा। इसलिए, मोदी 3.0 सरकार के सामने आने वाले समय में बड़ी चुनौतियाँ खड़ी होंगी, जिनका समाधान करना जरूरी होगा।
टीडीपी ने भाजपा को दी लिस्ट
इस बार तीसरी बार सत्ता में आने के लिए भाजपा को सहयोगियों की आवश्यकता होगी। 272 के जादुई आंकड़े को छूने के लिए भाजपा को नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू के समर्थन की जरूरत पड़ेगी। दोनों नेताओं को साथ लाने के लिए भाजपा ने तैयारियां शुरू कर दी हैं, लेकिन दोनों का समर्थन प्राप्त करना भाजपा के लिए आसान नहीं होगा।
टीडीपी के सूत्रों का कहना है कि उन्होंने लोकसभा स्पीकर, रोड ट्रांसपोर्ट, रूरल डेवलपमेंट, हेल्थ, हाउसिंग एंड अर्बन अफेयर्स, कृषि, जल शक्ति, आईटी एंड कम्यूनिकेशंस, शिक्षा, और वित्त (एमओएस) समेत पांच-छह कैबिनेट और राज्य मंत्री पदों की मांग की है। वहीं जेडीयू ने भी लोकसभा स्पीकर के पद के साथ-साथ कैबिनेट में उचित प्रतिनिधित्व की मांग की है। भाजपा से जुड़े सूत्रों के अनुसार, दोनों दलों की मांगों की सूची प्राप्त हो गई है और इस पर अंतिम निर्णय भाजपा नेतृत्व को लेना है। भाजपा नेतृत्व के सामने भी कुछ चिंताएं और शर्तें हैं, जिन्हें सहयोगियों के साथ बैठक के दौरान सुलझाना होगा। भाजपा और उसके सहयोगियों के बीच संतुलन बनाना एक चुनौती होगी, क्योंकि गठबंधन में शामिल दलों की मांगें और अपेक्षाएं अलग-अलग हैं। भाजपा को इन मांगों को संतुलित करते हुए सहयोगियों के साथ तालमेल बनाना होगा, ताकि एक स्थिर और प्रभावी सरकार बनाई जा सके।
भाजपा की रणनीति और नेतृत्व कौशल का परीक्षण इसी में होगा कि वे कैसे इन चुनौतियों का सामना करते हैं और अपने सहयोगियों के साथ मिलकर देश की जनता के हित में काम करते हैं। आने वाले समय में यह देखना रोचक होगा कि भाजपा किस तरह से अपने सहयोगियों की मांगों को पूरा करती है और किस प्रकार से इन चुनौतियों का समाधान निकालती है।
नायडू ने मोदी को कहा था ‘कट्टर आतंकवादी’
जब यह पूछा गया कि नायडू और नीतीश के साथ भाजपा के रिश्ते सहज नहीं रहे हैं, तो भाजपा के सूत्रों का कहना है कि सरकार बनानी है तो दोनों को साथ लेना ही होगा, और भाजपा नेतृत्व इस काम में निपुण है। हालांकि, दोनों दलों का समर्थन प्राप्त करना भाजपा के लिए इतना आसान नहीं रहेगा, क्योंकि जब भी किसी महत्वपूर्ण मुद्दे पर असहमति होगी, वे समर्थन की समीक्षा करने में संकोच नहीं करेंगे। इसका उदाहरण भाजपा 2018 में देख चुकी है, जब आंध्र प्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा नहीं मिलने पर टीडीपी ने मोदी सरकार का साथ छोड़ दिया था। तब दोनों के रिश्ते इतने बिगड़ गए थे कि नायडू ने मोदी को ‘कट्टर आतंकवादी’ तक कह दिया था। 2018 में टीडीपी के अविश्वास प्रस्ताव पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चंद्रबाबू नायडू की तुलना ‘भ्रष्ट राजनीतिज्ञ’ से की थी।
बाद में, 2019 के लोकसभा चुनावों के बाद जब टीडीपी ने दोबारा भाजपा के साथ संबंध जोड़ने की कोशिश की, तो भाजपा ने एनडीए में वापसी को लेकर कड़ा रुख अपनाया था। इस साल फरवरी में, जब नायडू जेल से रिहा होने के बाद अमित शाह और भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा के साथ मिले थे, तब से रिश्तों में सुधार हुआ था| इस प्रकार, नायडू और नीतीश के साथ भाजपा के रिश्तों में उतार-चढ़ाव रहे हैं, लेकिन सत्ता की सीढ़ी चढ़ने के लिए भाजपा को इन संबंधों को संभालना होगा।
स्पीकर पद पर नीतीश, नायडू की नजरें
टीडीपी और जेडीयू, दोनों की नजरें लोकसभा स्पीकर के पद पर टिकी हैं। सूत्रों के अनुसार, दोनों दलों ने पहले ही भाजपा नेतृत्व को संकेत दे दिया है कि स्पीकर का पद गठबंधन सहयोगियों को सौंपा जाना चाहिए। 1990 के दशक के अंत में, जब अटल बिहारी वाजपेयी गठबंधन सरकार का नेतृत्व कर रहे थे, तब टीडीपी के जीएमसी बालयोगी स्पीकर थे।
सूत्रों का कहना है कि दोनों दल भाजपा की रणनीति से वाकिफ हैं, इसलिए वे बहुत सतर्कता से कदम उठा रहे हैं। दोनों सहयोगियों ने यह कदम भविष्य में किसी भी ‘ऑपरेशन लोटस’ से बचने के लिए उठाया है। हालांकि यह स्पष्ट नहीं है कि बुधवार को नई दिल्ली में होने वाली एनडीए की बैठक में नायडू और नीतीश आधिकारिक तौर पर स्पीकर पद की मांग करेंगे या नहीं। लोकसभा अध्यक्ष का पद आमतौर पर सत्तारूढ़ गठबंधन को मिलता है, जबकि उपाध्यक्ष का पद पारंपरिक रूप से विपक्षी दल को दिया जाता है। हालांकि, 17वीं लोकसभा के इतिहास में पहली बार, बिना उपाध्यक्ष चुने ही समाप्त हो गई।