रेपो दर का महत्व उधार लेनेवालों के लिए उत्कृष्ट उपयोगी दर के रूप में होता है, जो उन्हें अपनी आर्थिक गतिविधियों के लिए संसाधनों की उपलब्धता प्रदान करता है। रेपो दर के बदलते प्रकार से ऋण लेनेवालों को अपने आर्थिक योजनाओं को सम्पन्न करने में सहायक बनाता है और उन्हें आवश्यक वित्तीय संसाधनों की सुविधा प्रदान करता है।

रेपो दर के प्रभाव
रेपो दर का निर्धारण भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा विभिन्न मैक्रो-आर्थिक प्रक्रियाओं के माध्यम से किया जाता है। यह दर विभिन्न आर्थिक संकेतों के आधार पर तय की जाती है, जैसे कि आर्थिक वृद्धि दर, मुद्रा संकेत, अधिकतम मुद्रा आपूर्ति आदि। रिजर्व बैंक अपने निर्णयों में आर्थिक समीक्षा, संबंधित देशों की अर्थव्यवस्था की स्थिति, और विभिन्न आर्थिक क्षेत्रों की प्रतिक्रिया को ध्यान में रखते हुए रेपो दर को निर्धारित करता है। इस प्रक्रिया में भारतीय अर्थव्यवस्था की समझ, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय आर्थिक घटकों का विश्लेषण, और संबंधित नीतियों का मूल्यांकन किया जाता है। इस प्रकार, रेपो दर का निर्धारण अर्थव्यवस्था की समीक्षा और नियंत्रण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है और आर्थिक दिशा तय करता है।
ऋण लेनेवालों को सुविधा
रेपो दर के बदलने से ऋण लेनेवालों को उनकी आर्थिक गतिविधियों के लिए उपलब्ध संसाधनों की उपलब्धता में परिवर्तन आता है। जब रेपो दर में कटौती होती है, तो बैंकों को ऋण देने के लिए अधिक नकदी उपलब्ध होती है, जिससे वे ऋण लेनेवालों को और अधिक उपलब्ध संसाधन प्रदान कर सकते हैं। इससे ऋण लेनेवाले अधिक ऋण ले सकते हैं और उनकी आर्थिक गतिविधियों के लिए अधिक संसाधन प्राप्त होता है।

यह प्रक्रिया आर्थिक स्थिति को सुधारने में मदद करती है और बाजार में निवेश की प्रोत्साहना करती है। इसके फलस्वरूप, व्यापारिक गतिविधियों की वृद्धि होती है और अर्थव्यवस्था में वृद्धि होती है। इससे समाज में नौकरियों की समृद्धि होती है और समृद्धि का स्तर बढ़ता है।
रेपो दर के बदलते प्रकार से ऋण लेनेवालों को आर्थिक स्थिति में सुधार होता है और उन्हें अधिक संसाधनों की उपलब्धता प्राप्त होती है, जिससे उनकी आर्थिक गतिविधियों में वृद्धि होती है।
रेपो दर: वर्तमान परिस्थिति