भारत-ईरान समझौते में चाबहार बंदरगाह को लेकर एक डील हुई है। इस डील के अनुसार, भारत को बंदरगाह का 10 साल का लीज़ मिलेगा। हालांकि, यह समझौता अमेरिका को पसंद नहीं आ रहा है और वह प्रतिबंधों की धमकी दे रहा है। यहां यह सवाल उठता है कि क्या वाकई में प्रतिबंध लग सकता है।
HIGHLIGHTS
- ईरान और भारत के बीच बंदरगाह की डील हुई है
- अमेरिका ने भारत को प्रतिबंधों की धमकी दी है
- सवाल उठता है कि 2018 में छूट देने वाले अमेरिका ने यूटर्न क्यों लिया
भारत और ईरान के बीच चाबहार में शाहिद बेहिश्ती पोर्ट टर्मिनल के विकास को लेकर एक दीर्घकालिक डील हुई है। इस डील पर हस्ताक्षर के बाद से ही अमेरिका खुश नहीं लग रहा। अमेरिका ने प्रतिबंधों के जोखिम की चेतावनी दी है। अमेरिका की प्रतिक्रिया को व्यापक रूप से नीति-उलट कदम के रूप में देखा जा रहा है। 2018 की एक पॉलिसी के तहत अमेरिका ने चाबहार बंदरगाह के विकास के लिए भारत को कुछ प्रतिबंधों से छूट दी थी। विदेश मंत्रालय ने 13 मई को कहा कि इंडिया पोर्ट्स ग्लोबल लिमिटेड (IPGL) और ईरान के बंदरगाह और समुद्री संगठन के बीच हुई डील क्षेत्रीय कनेक्टिविटी और अफगानिस्तान, मध्य एशिया और यूरेशिया के साथ भारत के संबंधों को बढ़ावा देगा।
ईरान के सड़क और शहरी विकास मंत्रालय के मुताबिक इस समझौते से भारत को बंदरगाह का इस्तेमाल करने के लिए 10 साल की सुविधा मिलेगी, जो पाकिस्तान के साथ ईरान की दक्षिणपूर्वी सीमा के करीब स्थित है। न्यूज एजेंसी AFP ने बताया कि कॉन्ट्रैक्ट के मुताबिक IPGL रणनीतिक उपकरण प्रदान करने और बंदरगाह के परिवहन बुनियादी ढांचे को विकसित करने में 370 मिलियन डॉलर का निवेश करेगा। समझौते के बाद अमेरिकी विदेश विभाग के उप प्रवक्ता वेदांत पटेल ने कहा, ‘मैं सिर्फ इतना कहूंगा कि ईरान पर अमेरिकी प्रतिबंध लागू रहेंगे और हम इन्हें लागू करना जारी रखेंगे। कोई भी संस्था ईरान के साथ व्यापार करने की सोचे तो उसे जोखिम के बारे में पता होना चाहिए।’ विशेष छूट के बारे में पूछने पर पटेल ने न में जवाब दिया।
क्या प्रतिबंध लगा सकता है अमेरिका?
ईरानी राजदूत इराज इलाही ने मंगलवार को उज्जयिनी में कहा कि भारत का महत्व किसी भी देश को उस पर प्रतिबंध लगाने से रोकेगा। उन्होंने कहा कि किसी भी अमेरिकी प्रतिबंध से कई देशों के व्यापार हितों को नुकसान होगा। पूर्व भारतीय विदेश सचिव कंवल सिब्बल ने एक पोस्ट में लिखा, ‘अमेरिका ने चाबहार को अफगानिस्तान के लिए एक वैकल्पिक मार्ग के रूप में प्रतिबंधों से बाहर किया था। अमेरिका ने अफगानिस्तान को तालिबान को सौंप दिया। सार्वजनिक रूप से प्रतिबंधों की धमकी क्यों दी गई? यह भी कहा जा सकता था कि वह भारत से संपर्क में हैं।’ अमेरिकी सेना के अफगानिस्तान से निकलने के बाद माना जा रहा है कि चाबाहर का महत्व उसके लिए कम हो गया है।
अमेरिका ने ऐसे दी थी छूट
नवंबर 2018 में, अमेरिका ने चाबहार बंदरगाह के विकास और इसे अफगानिस्तान से जोड़ने वाली रेलवे लाइन के निर्माण में भारत को कुछ प्रतिबंधों से छूट दी थी, लेकिन इसके साथ ही अमेरिका ने भारतीय संस्थाओं और कंपनियों पर कई शर्तें लगाई थीं। अगर ये शर्तें पूरी नहीं होतीं तो उन्हें प्रतिबंधों का सामना करना पड़ सकता है। अमेरिका ने भारत को चाबहार बंदरगाह के विकास, रखरखाव और अफगानिस्तान के लिए एक रेल लिंक शामिल करने की मंजूरी दी थी, लेकिन इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड कॉर्प्स के साथ ईरान से लेनदेन की अनुमति नहीं दी गई। इसके अलावा, कच्चे तेल के आयात और निर्यात को भी मंजूरी नहीं दी गई। यह स्थिति इस डील को और जटिल बना देती है। अमेरिका की ओर से इसका मुख्य लक्ष्य चाबहार के माध्यम से अफगानिस्तान को अभिवादन देना था, जिसके लिए भारत एक कुशल भूमिका निभा रहा है|