लोकसभा चुनाव: पंजाब में राजनीतिक विरासत को संरक्षित करने के लिए कई प्रमुख व्यक्तियों की टक्कर, भगवंत मान भी सामने आए

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पूर्व मुख्यमंत्रियों प्रकाश सिंह बादल और कैप्टन अमरिंदर सिंह ने दशकों तक सूबे की राजनीति पर अपना प्रभाव बनाया। उनके परिवारों की राजनीतिक विरासत के आगे बढ़ने पर पहली बार सवालों का सामना हो रहा है।

पंजाब के लोकसभा चुनाव में, पूर्व मुख्यमंत्रियों प्रकाश सिंह बादल और कैप्टन अमरिंदर सिंह के परिवारों की विरासत और वर्तमान मुख्यमंत्री भगवंत मान की साख दांव पर है। यह स्थिति पंजाबी राजनीतिक मंच पर बड़ी चर्चा का विषय बन चुका है। इन तीनों नेताओं के परिवारों की राजनीतिक विरासत के आगे बढ़ने के साथ ही उन्हें सामना करना पड़ रहा है भगवंत मान के प्रतिद्वंद्वी विधायकों के साथ। इस चुनाव में, पंजाबी राजनीति के इस महत्वपूर्ण संघर्ष के दौरान, यह एक महत्वपूर्ण संकेत है कि किस पार्टी का हाथ पंजाब की राजनीति पर राज करेगा। बादल, अमरिंदर, और मान – ये सभी पंजाब के राजनीतिक मंच पर बड़े खिलाड़ी हैं, जिनके परिवारों की राजनीतिक विरासत पर नजरें हैं।

लोकसभा चुनाव

सीएम मान पिछले दो आम लोकसभा चुनाव में मैदान में थे, लेकिन इस बार मान पार्टी के खेवनहार की भूमिका हैं और विरोधियों की कड़ी चुनौती का सामना कर रहे हैं। सीएम मान के सामने अपनी सियासत को नई धार देकर आगे बढ़ाने की चुनौती है। उनकी सियासी राजधानी संगरूर के अलावा उनके करीबी दोस्त कर्मजीत अनमोल की फरीदकोट सीट के अलावा बठिंडा, जालंधर सीधे उनकी प्रतिष्ठा से जुड़ी हुई हैं। सीएम मान की नजर लुधियाना, फतेहगढ साहिब, होशियारपुर पर भी है। लोकसभा चुनाव में बेहतरीन प्रदर्शन करके सीएम मान, पार्टी के भीतर व सियासत में अपना कद ऊंचा करना चाहते हैं। हालांकि, बहुकोणीय मुकाबले नई तस्वीर का खाका खींच सकते हैं। इस चुनाव में, सीएम मान की नेतृत्व और प्रदर्शन का महत्वपूर्ण रोल होगा, जिससे उन्हें नई दिशा और ऊर्जा मिलेगी।

हरसिमरत चौथी बार मैदान में

बादल परिवार के पांच सदस्य लंबे समय से लोकसभा व विधानसभा में प्रतिनिधित्व करते रहे हैं। पूर्व मुख्यमंत्री महरूम प्रकाश सिंह बादल, उनके भाई महरूम गुरदास सिंह बादल, बेटे सुखबीर सिंह बादल, भतीजे मनप्रीत सिंह बादल और पुत्रवधू हरसिमरत कौर बादल, पिछले कई दशकों से लोकसभा और विधानसभा में नुमाइंदगी करते आ रहे हैं। लेकिन पूर्व मुख्यमंत्री बादल, मनप्रीत सिंह बादल और सुखबीर सिंह बादल पिछले विधानसभा 2022 चुनाव में हार गए थे। सुखबीर बादल, वर्तमान सांसद तो हैं, लेकिन इस बार चुनाव मैदान में नहीं हैं।

बादल परिवार के लिए चुनावी मैदान में सिर्फ सांसद हरसिमरत कौर बादल ही उपस्थित हैं। इस परिस्थिति में, बादल परिवार को अपनी विरासत को बनाए रखने के लिए हरसिमरत कौर बादल की जीत अत्यंत महत्वपूर्ण है। सुखबीर बादल के सामने, उनकी पत्नी हरसिमरत कौर बादल के माध्यम से ही बादल परिवार की विरासत को सुरक्षित रखने का अवसर है। इसलिए, सुखबीर बादल बठिंडा में अपनी पत्नी की जीत को सुनिश्चित करने के लिए खास ध्यान दे रहे हैं और विभिन्न क्षेत्रों में छोटे से छोटे तत्वों को अकाली दल के पक्ष में जुटाने के लिए प्रयासरत हैं। बादल परिवार को भाजपा के अलग से चुनाव लड़ने और मलूका परिवार के भाजपा में शामिल होने के बाद हुए सियासी परिस्थितियों से कठिनाई का सामना करना पड़ रहा है|

परनीत पर दारोमदार

कैप्टन परिवार की एकमात्र सांसद परनीत कौर हैं, जो केवल अपने परिवार के चेहरे के रूप में सदन में हैं। कैप्टन अमरिंदर सिंह ने पटियाला से 2022 के विधानसभा चुनाव में हार का सामना किया। उनकी मां मोहिंदर कौर, जो राज्यसभा सदस्य रह चुकी हैं, ने पटियाला से सांसद के रूप में भी सेवा की है। कैप्टन सांसद रहे हैं और विधानसभा चुनाव में भी जीतते रहे हैं। उनकी पत्नी परनीत कौर लगातार सांसद रही हैं। उनकी बेटी जयइंदर कौर भाजपा में सक्रिय हैं। पटियाला के शाही परिवार की सियासी विरासत को बनाए रखने का बोझ परनीत कौर पर है। उनकी बेटी पूरी तरह से सक्रिय होती है, लेकिन कैप्टन अमरिंदर सिंह चुनाव में अब अपना चेहरा दिखाने से पीछे हट चुके हैं। कांग्रेस के डाॅ. धर्मवीर गांधी और किसान संगठनों का विरोध शाही परिवार की विरासत के आगे बढ़ने में रुकावट बनता प्रतीत हो रहा है। साथ ही, यह स्थिति परिवार के विभिन्न सदस्यों के बीच विवादों को भी उजागर करती है।

बादल और कैप्टन परिवार की महिलाएं मैदान में

बादल और कैप्टन परिवारों की नारी शक्ति, जो वर्तमान में सांसद हैं, अब चुनाव मैदान में उतर चुकी हैं। यह चुनाव केवल उनकी जीत या हार का फैसला ही नहीं करेगा, बल्कि सियासी बिसात पर उनकी विरासत के कायम रहने या नहीं रहने का निर्णय भी करेगा। कैप्टन अमरिंदर सिंह की पत्नी, परनीत कौर, पटियाला सीट से भाजपा के उम्मीदवार के रूप में चुनाव मैदान में पहली बार उतर रही हैं, जबकि हरसिमरत कौर बादल बठिंडा सीट पर भाजपा के साथ गठबंधन के बिना भी चुनाव मैदान में उतरी हैं|

 

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