शराब नीति घोटाला
शराब नीति घोटाला:दिल्ली शराब नीति घोटाले में सीएम अरविंद केजरीवाल को ईडी ने हिरासत में ले लिया है। कोर्ट ने केजरीवाल को 28 अगस्त तक के लिए ईडी रिमांड पर भेजने का आदेश दिया है। इस संदर्भ में, दिल्ली के सीएम के पास क्या कानूनी विकल्प हैं, यह सवाल उठता है। क्या सीएम जेल में रहेंगे या बेल के लिए आवेदन करेंगे, यह देखना है। अंततः, कानूनी विशेषज्ञों की राय क्या है?
हाइलाइट्स
- राहत के लिए कौन सी अदालत का दरवाजा खटखटाना होगा?
- अधिकतम 14 दिन की रिमांड की मांग की जा सकती है
- अगर 14 दिनों के भीतर कोई नया तथ्य नहीं तो रिमांड नहीं
दिल्ली शराब नीति घोटाला मामले में सीएम अरविंद केजरीवाल को 28 मार्च तक ईडी की रिमांड पर भेज दिया गया है। इसके बाद, सवाल उठता है कि मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी के बाद अब आगे क्या कानूनी रास्ता होगा? क्या जमानत के लिए अर्जी दाखिल की जा सकती है? केजरीवाल की राहत के लिए कौन सी अदालत के दरवाजे खटखटाने होंगे? ये सभी कानूनी सवाल हैं, जिन पर चर्चा तेज है।
शराब नीति घोटाला:14 दिनों की अधिकतम रिमांड की व्यवस्था
जहां तक रिमांड का सवाल है, वहां अधिकतम 14 दिन की रिमांड की मांग की जा सकती है। कानूनी जानकार और हाई कोर्ट के वकील नवीन शर्मा बताते हैं कि आरोपी की गिरफ्तारी के बाद पहले 14 दिनों के दौरान जांच एजेंसी रिमांड के लिए अर्जी दाखिल कर सकती है और रिमांड के दौरान आरोपी से पूछताछ कर सकती है। कानूनी जानकार बताते हैं कि रिमांड पर बहस के दौरान सरकारी वकील को अदालत को इस बात से अवगत कराना होता है कि पूछताछ क्यों जरूरी है। आखिर क्या रिकवरी करनी है। साथ ही अदालत को बताना होता है कि आरोपी से पूछताछ के आधार पर छानबीन में क्या मदद मिलनी है। कोर्ट के पास अधिकार है कि जितने दिनों की रिमांड की मांग की जा रही है उतने दिन या उससे कम अवधि के लिए रिमांड पर भेज सकती है। अगर इस दौरान पूछताछ पूरी नहीं होती है तो फिर जांच एजेंसी दोबारा रिमांड बढ़ाने की मांग कर सकती है।
शराब नीति घोटाला: पूछताछ के बाद कैद में भेजने का विधान
पहली गिरफ्तारी के 14 दिनों के दौरान ही रिमांड ली जा सकती है। अगर 14 दिनों के भीतर जांच एजेंसी को कोई नया तथ्य नहीं मिलता है तो फिर रिमांड नहीं मिलेगी, लेकिन पुलिस को पूछताछ करनी है तो कोर्ट की इजाजत से जेल में भी पूछताछ की जा सकती है। रिमांड अवधि पूरी होने के बाद आरोपी को जब तक जमानत न मिले, तब तक न्यायिक हिरासत के तहत जेल भेजने का प्रावधान है।
शराब नीति घोटाला: जमानत की अर्जी किस समय लगाई जा सकती है?
जांच एजेंसी द्वारा रिमांड लिए जाने के बाद जब आरोपी को न्यायिक हिरासत में भेजा जाता है, उसके बाद ही आरोपी की जमानत अर्जी पर सुनवाई होती है। अर्थात, रिमांड के दौरान जमानत पर सुनवाई नहीं होती है, बल्कि न्यायिक हिरासत की अवधि के दौरान जमानत पर सुनवाई होती है।
डिफॉल्ट बेल कब मिलती है?
यदि निश्चित समय सीमा में चार्जशीट नहीं दाखिल की जाती, तो आरोपी को जमानत दी जाती है। अर्थात, सीआरपीसी की धारा-167 (2) के तहत 10 साल तक की सजा के मामले में गिरफ्तारी के 60 दिनों के भीतर चार्जशीट दाखिल करनी आवश्यक है और इस समय के दौरान अगर चार्जशीट नहीं दाखिल की जाती है, तो आरोपी को जमानत मिलती है। जबकि 10 साल से अधिक या फांसी की सजा के मामले में 90 दिनों के भीतर चार्जशीट दाखिल नहीं करने पर भी आरोपी को जमानत मिल जाती है। कानूनी जानकार और वरिष्ठ वकील रमेश गुप्ता बताते हैं कि चाहे मामला कितना भी गंभीर हो, अगर पुलिस समय पर चार्जशीट नहीं दाखिल करे, तो भी आरोपी को जमानत दी जा सकती है। उदाहरण के रूप में, 10 साल या उससे अधिक सजा के मामले में गिरफ्तारी के 90 दिनों के भीतर चार्जशीट दाखिल करना आवश्यक होता है। अगर इस दौरान चार्जशीट दाखिल नहीं की जाती है, तो आरोपी को जमानत दी जाती है।
अग्रिम जमानत कब दी जाती है?
वकील राजीव मलिक का कहना है कि गिरफ्तारी से पहले ही अगर यह संदेह हो कि गिरफ्तारी हो सकती है तो आरोपी अग्रिम जमानत की मांग कर सकता है। अगर आरोपी को अंदेशा हो कि वह किसी विशेष मामले में गिरफ्तार हो सकता है, तो उसे धारा-438 के तहत अग्रिम जमानत की मांग करने का अधिकार होता है। जब कोर्ट किसी आरोपी को जमानत देता है, तो उसे पर्सनल बॉन्ड के साथ जमानती राशि जमा करने के लिए कह सकता है। जब भी किसी आरोपी को जमानत दी जाती है, तो उसे पर्सनल बॉन्ड के साथ जमानती राशि जमा करने का निर्देश भी दिया जा सकता है।
नियमित जमानत का प्रावधान
वकील अमन सरीन बताते हैं कि जब किसी आरोपी के खिलाफ ट्रायल कोर्ट में केस पेंडिंग होता है, उस दौरान आरोपी सीआरपीसी की धारा-439 के तहत अदालत से जमानत की मांग करता है। ट्रायल कोर्ट या हाई कोर्ट केस की मेरिट आदि के आधार पर उक्त अर्जी पर फैसला लेती है। उक्त धारा के तहत आरोपी को अंतरिम जमानत या फिर नियमित जमानत दी जाती है, जिसके लिए आरोपी को मुचलका भरना होता है और जमानत के लिए दिए गए निर्देशों का पालन करना होता है।
उच्चतम न्यायालय का मार्ग
यदि मामले में आरोपी चाहे, तो उसके अनुसार, जब निचली अदालत से जमानत की अर्जी खारिज होती है, तब वह हाई कोर्ट की दरवाजा खटखटा सकता है, और अगर हाई कोर्ट से भी जमानत की अर्जी खारिज हो जाए, तो फिर सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल कर सकता है। साथ ही, आरोपी को यह भी लगता है कि उसके खिलाफ गलत तरीके से मामला बनाया गया है, तो वह हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में एफआईआर रद्द करने के लिए भी गुहार लगा सकता है|