बांसलोई नदी: नदी में खुदाई करते हुए मज़दूर ने सुनी अजीब आवाज़, पास गए तो हो गए हैरान

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बांसलोई नदी से मिली काले पत्थर की मूर्ति ऐतिहासिक महत्व की हो सकती है। हालांकि, मूर्ति की उम्र की पुष्टि के लिए पुरातत्व विभाग की जांच का इंतजार किया जा रहा है। भूगर्भ विभाग के विशेषज्ञों के अनुसार, यह मूर्ति लगभग दो हजार वर्ष पुरानी हो सकती है। पिछले दो सदी में, इसी नदी के एक किलोमीटर दूर, काली मां की एक और मूर्ति मिली थी, जो लगभग 200 साल पहले की थी।

HIGHLIGHTS

  1. 200 साल पहले बांसलोई नदी में मिली थी काले पत्थर की मां काली की प्रतिमा
  2. बुढ़ाबाबा शिव मंदिर में स्थापित कर की जा रही पूजा-अर्चना

रोहित कुमार या रंजन गुप्ता, पाकुड़, बुधवार को खुदाई के दौरान बांसलोई नदी के कुलबोना बालू घाट से मिली काले पत्थर की प्रतिमा ऐतिहासिक महत्व की हो सकती है। यह मूर्ति कितनी पुरानी है इसका सही आकलन तो पुरातत्व विभाग की जांच के बाद होगी, परंतु भूगर्भ विभाग के विशेषज्ञ की मानते को यह मूर्ति दो हजार साल पुरानी हो सकती है।

पुरातत्व विभाग को यह संभावना है कि यह मूर्ति सातवीं सदी की हो सकती है। इसी नदी में करीब एक किलोमीटर की दूरी पर 200 साल पहले भी काले पत्थर की मां काली की मूर्ति खनन के दौरान ही मिली थी। गांव के लोगों ने इसे स्थानीय बुढ़ाबाबा शिव मंदिर में स्थापित किया है|

बालू खुदाई के दौरान मिली मूर्ति

कुलबोना गाँव के मजदूर संदीप लेट ने बताया कि जहाँ मूर्ति मिली है, वहाँ वह अकेले बालू खुदाई कर रहा था। इस दौरान, उसका बेलचा (बालू उठाने वाला उपकरण) बार-बार एक पत्थर से टकरा रहा था। सोचते-सोचते, वह और उसका साथी मजदूर पृथ्वी लेट को पत्थर हटाने के लिए बुला लिया।

पत्थर को हाथ देते ही, दोनों को एहसास हुआ कि यह पत्थर नहीं है। तब वे सावधानी से बालू को हटाने लगे, और तब उन्होंने देखा कि एक काले पत्थर की मूर्ति खड़ी है। इसी दौरान, गाँव के दर्जनों मजदूर बालू को हटाने में मदद के लिए पहुँचे। उसके बाद, ग्रामीणों ने मूर्ति को हाथ लगाया, और इसे मां दुर्गा की मूर्ति मानकर पूजा की।

खबर फैलते ही, इसे लेकर पूरे क्षेत्र में उत्सुकता बढ़ गई। बाद में, महेशपुर पुलिस ने मूर्ति को जब्त कर इसे थाने में सुरक्षित रखा है।

बांसलोई नदी

इंटरनेट मीडिया पर वायरल हो रही मूर्ति की तस्वीर

बुधवार को बालू खुदाई के दौरान मिली मूर्ति की तस्वीरें और वीडियो इन दिनों इंटरनेट मीडिया पर तेजी से वायरल हो रहे हैं। लोग इस मूर्ति को लेकर विभिन्न प्रकार के अनुमान लगा रहे हैं। मूर्ति मिलने के बाद से लोगों की आस्था भी प्रबल हो गई है। लोग यह जानने के लिए उत्सुक हैं कि यह मूर्ति बांसलोई नदी में कहाँ से आई, यह कितनी पुरानी है और इसका ऐतिहासिक महत्व क्या है।

भूगर्भ शास्त्री डॉ. प्रो. रणजीत कुमार सिंह ने बताया कि यह मूर्ति आग्नेय चट्टान से निर्मित है। मूर्ति मिलने के बाद उन्होंने नई दिल्ली के पुरातत्व विभाग के विशेषज्ञों को इसकी तस्वीरें भेजीं और इस पर चर्चा की। विशेषज्ञों का मानना है कि यह मूर्ति सातवीं सदी की हो सकती है। पुरातत्व विभाग के जानकार इसे दुर्गा नहीं बल्कि पार्वती की मूर्ति मान रहे हैं। जल्द ही विभाग एक टीम को जांच के लिए भेज सकता है।

संदीप लेट और पृथ्वी लेट द्वारा मूर्ति की खोज के बाद, ग्रामीणों में उत्सुकता और आस्था का संचार हो गया। मूर्ति मिलने के बाद से ही इलाके में लोग इसे देखने के लिए जुटने लगे। सोशल मीडिया पर मूर्ति की तस्वीरें और वीडियो वायरल होने के बाद से आसपास के इलाकों के लोग भी इसे देखने आ रहे हैं। ग्रामीणों ने मूर्ति की पूजा-अर्चना शुरू कर दी है और इसे माँ पार्वती के रूप में स्थापित करने की योजना बना रहे हैं। महेशपुर पुलिस ने मूर्ति को जब्त कर थाने में सुरक्षित रखा है, ताकि पुरातत्व विभाग की टीम इसकी पूरी जांच कर सके और इसके ऐतिहासिक महत्व का सही आकलन किया जा सके।

इस घटना ने पूरे क्षेत्र में सनसनी फैला दी है और लोग यह जानने के लिए उत्सुक हैं कि इस मूर्ति का इतिहास क्या है और यह यहाँ कैसे पहुँची। पुरातत्व विभाग की टीम के आने के बाद ही इस रहस्यमयी मूर्ति के बारे में और जानकारी मिल सकेगी। इस बीच, स्थानीय लोग अपनी धार्मिक आस्था के साथ मूर्ति की पूजा में लगे हुए हैं, जिससे माहौल भक्तिमय हो गया है।

 

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